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Book Details
Language
hindi
Print Length
166
Description
आज अगर आदमी प्रकृति के प्रति इतना हिंसक है, पेड़-पौधों के प्रति इतना हिंसक है, जानवरों के प्रति इतना हिंसक है, तो उसकी वजह ये है कि वो अपने शरीर के प्रति भी बहुत हिंसक है।
शरीर से मुक्ति चाहते हो, तो शरीर को ‘शरीर’ रहने दो। जिन्हें शरीर से मुक्ति चाहिए हो, वो शरीर के दमन का प्रयास बिलकुल न करें। जिन्हें शरीर से ऊपर उठना हो, वो शरीर से दोस्ती करें, शरीर से डरें नहीं, घबरायें नहीं।
आचार्य प्रशांत ने इस पुस्तक के माध्यम से शरीर के प्रति शर्म, डर, अज्ञान को हमारे समक्ष रखा है।
Index
1. शारीरिक आकर्षण इतना प्रबल क्यों?2. स्त्री शरीर का आकर्षण हावी क्यों?3. नारी के लिए आकर्षण हो तो4. . स्त्री-पुरुष के मध्य आकर्षण का कारण5. लड़का-लड़की के खेल में जवानी की बर्बादी6. क्या सेक्स का कोई विकल्प है जो मन शांत रख सके?
आज अगर आदमी प्रकृति के प्रति इतना हिंसक है, पेड़-पौधों के प्रति इतना हिंसक है, जानवरों के प्रति इतना हिंसक है, तो उसकी वजह ये है कि वो अपने शरीर के प्रति भी बहुत हिंसक है।
शरीर से मुक्ति चाहते हो, तो शरीर को ‘शरीर’ रहने दो। जिन्हें शरीर से मुक्ति चाहिए हो, वो शरीर के दमन का प्रयास बिलकुल न करें। जिन्हें शरीर से ऊपर उठना हो, वो शरीर से दोस्ती करें, शरीर से डरें नहीं, घबरायें नहीं।
आचार्य प्रशांत ने इस पुस्तक के माध्यम से शरीर के प्रति शर्म, डर, अज्ञान को हमारे समक्ष रखा है।
Index
1. शारीरिक आकर्षण इतना प्रबल क्यों?2. स्त्री शरीर का आकर्षण हावी क्यों?3. नारी के लिए आकर्षण हो तो4. . स्त्री-पुरुष के मध्य आकर्षण का कारण5. लड़का-लड़की के खेल में जवानी की बर्बादी6. क्या सेक्स का कोई विकल्प है जो मन शांत रख सके?