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भागे भला न होएगा [Important Read]
संत कबीर के दोहों पर
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Book Details
Language
hindi
Print Length
224
Description
कबीर साहब के वचनों को समझने का प्रयत्न मानवता ने बारम्बार किया है। किंतु संत को समझने के लिए कुछ संत जैसा होना प्रथम एवं एकमात्र अनिवार्यता है। संत जो कहते हैं उनके अर्थ दो तलों पर होते हैं - शाब्दिक एवं आत्मिक। समाज ने कबीर साहब के वचनों के शाब्दिक अर्थ कर, सदा उन्हें अपने ही तल पर खींचने का प्रयास किया है, आत्मिक अर्थों तक पहुँच पाना उसके लिए दुर्गम प्रतीत होता है। आचार्य प्रशांत ने उन वचनों के आत्मिक अर्थों का रहस्योद्घाटन कर कुछ ऐसे मोती मानवता के समक्ष प्रस्तुत किये हैं जो जीवन की आधारशिला हैं। आज की परिस्थिति में जीवन को सरल एवं सहज भाव में व्यतीत कर पाने का साहस, आचार्य जी के शब्दों से मिलता है। कबीर साहब, जो सदा सत्य के लिए समर्पित रहे, उनके वचनों के गूढ़ एवं आत्मिक अर्थों से अनभिज्ञ रह जाना वास्तविक जीवन की मिठास से अपरिचित रह जाने के समान है, कृपा को उपलब्ध न होने के समान है। प्रौद्योगिकी युग में थपेड़े खाते हुए मनुष्य के उलझे जीवन के लिए ये पुस्तक प्रकाश स्वरूप है।
Index
1. बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर 2. जो वचन आपसे न आए, वही मीठा है 3. मनुष्य जन्म मुक्ति का अवसर है, या मौत की सज़ा? 4. घर जलाना नहीं, घर को रौशन करना 5. भक्ति माने क्या? 6. क्षमा माने क्या?
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